Wednesday, 16 December 2020

नीव की ईट

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नीव की ईट































 

1) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:

 

1.  'नीव की ईट ' पाठ के आधार पर बताए कि दुनिया क्या देखती है?

उत्तर:  दुनिया चमक-दमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उसे कोई नहीं देखता |



 

2. इमारत का होना ना होना किस बात पर निर्भर करता है?

उत्तर:  इमारत का होना - ना होना नीव की मजबूत ईट पर निर्भर करता है |

 

3. लेखक ने नींव की ईंट किसे बताया है?

उत्तर:  लेखक के अनुसार नीव की ईट वह होती है जो जमीन के अंदर सात हाथ नीचे तक गाड़ दी जाती है ताकि इमारत जमीन से 100 हाथ ऊपर तक जा सके |

 

4.  नीव की ईट ने अपना अस्तित्व क्यों विलीन कर दिया?

उत्तर:  नीव की ईट ने अपना    प्रसिद्ध इसलिए विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देख सके |

5.  ईसा की शहादत ने किस धर्म को अमर बना दिया?

उत्तर: ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया |

 

6. किसकी हड्डियों के दान से वृत्रासुर का नाश हुआ?

उत्तर:  दधीचि की हड्डियों के दान से ही वृत्रासुर का नाश हुआ |

 

7. लेखक के अनुसार सत्य की प्राप्ति कब होती है?

उत्तर:   ढूंढने से ही सत्य की प्राप्ति होती है |

 

 

8. पाठ में लेखक ने 'दधीचि'   तथा ' वृत्रासुर' शब्द किसके लिए प्रयुक्त किए हैं?

उत्तर:  पाठ में लेखक ने दधीचि शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया है , जिसने अपने देश के लिए अपना बलिदान तक दे दिया था और वृत्रासुर उस विदेशी राक्षस के लिए किया है जिसका नाश दधीचि रूपी बलिदानी पुरुषों ने किया |

 

2) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 3004 पंक्तियों में दीजिए:

 

1. नीव की ईट और कंगूरे की ईट दोनों क्यों    वनदनीय है?

उत्तर:  नीव की ईट इसलिए वंदनीय होती है, क्योंकि नीव की ईट ने अपने को सात हाथ जमीन के अंदर इसलिए  गाड़ दिया ताकि इमारत जमीन से 100 हाथ ऊपर तक जा सके | वास्तव में वह ईट धन्य और  वंदनीय  ही होती है जो जमीन के नीचे जाकर गड़ जाती है और इमारत की पहली ईंट बनती है | कंगूरे की ईट भी वंदनीय होती है , धन्य होती है जो कट- छंट कर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस  लोक - लोचनो को अपनी ओर आकृष्ट करती है |

 

 

2.    नीव की ईट पाठ के आधार पर सत्य का स्वरूप स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:   ठोस 'सत्य' सदा 'शिवम्र ' होता ही है, किंतु वह हमेशा 'सुंदरम्र ' भी हो , यह आवश्यक नहीं | सत्य कठोर होता है | कठोरता तथा भद्दापन   साथ - साथ जन्मा करते  है, जिया करते हैं | हम कठोरता अर्थात सत्य से   भागते हैं ,भद्देपन से भी मुख मोड़ते हैं इसलिए सत्य से भी भागते हैं | नहीं तो हम इमारत के गीत, नीव के गीत से   प्रारंभ करते | वस्तुत : इमारत के संदर्भ  में ठोस नींव की ईंट  ही सत्य होती है |

 

3. देश को आजाद करवाने में किन लोगों का योगदान रहा? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए|

उत्तर:  आज हमारा देश आजाद हुआ | सिर्फ उनके कारनामों के कारण नहीं , जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है | वास्तव में जिन लोगों को देश की आजादी के साथ जोड़ा जाता है वही केवल आजादी के फरिश्ते नहीं होते , अपितु जो दधीचि की तरह अपना बलिदान देते हैं , वस्तुत : आजादी के वही सच्चे योद्धा होते हैं | देश की आजादी का श्रेय तो उन्हीं बलिदानी व्यक्तियों को देना चाहिए जिन्होंने अपनी प्राण की आहुति इस यज्ञ में सर्वप्रथम डाली थी |

 

4. आजकल के नौजवानों में कंगूरे बनने की होड़ क्यों मची हुई है?

उत्तर:  लेखक को इस बात का बड़ा अफसोस है कि लोग किसी भवन के कंगूरे तो बनना चाहते हैं , क्योंकि कंगूरा उन्हें लुभाता है परंतु  नीव बनने  को कोई भी तैयार नहीं |  नौजवानों में कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ सी लगी हुई है | सभी एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की प्रतिस्पर्धा तथा कोशिश में जुटे हैं | इस प्रकार नौजवानों में  नीव की ईट बनने की कामना लुप्त सी ही हो रही है |

 

5. नए समाज के निर्माण के लिए हमें किस चीज की आवश्यकता है?

उत्तर:  सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की और हमने पहला कदम बढ़ाया है | इस नए समाज के निर्माण के लिए हमें नीव की ईट चाहिए | लेखक कहता है कि हमें 700000 गांवों का नव- निर्माण, हजारों शहरों और कारखानों का नव निर्माण करना है  जिसे कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता | जरूरत है ऐसे नौजवानों की जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दे |

 

3) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 6- 7 पंक्तियों में दीजिए:

 

1.  'नीव की ईट' पाठ के आधार पर बताए कि समाज की आधारशिला क्या होती है?

उत्तर:   'नीव की ईट' पाठ के आधार पर तो यही प्रमाणित होता है कि किसी भी समाज की आधारशिला उसकी नीव की पहली ईंट से रखी जाती है | हमारे देश की आजादी के बाद तो एक सशक्त समाज का निर्माण परमावश्यक हो गया है | सदियों के बाद हमने नए समाज की सृष्टि की और सहसा कदम बढ़ाया है | इस नए समाज के निर्माण के लिए हमें नीव की ईट चाहिए | अफसोस कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ लगी हुई है, पर नीव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है |   आत: नीव की ईट बनने के लिए नौजवानों को आगे आना चाहिए |

 

2. आज देश को कैसे नौजवानों की जरूरत है पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए?

उत्तर: ' नीव की ईट ' नामक पाठ के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि आज देश को ऐसे उत्साही नौजवानों की परमावश्यकता है जो समाज के नव -निर्माण में नीव की ईट बनने के लिए   मन से तैयार हो | लेखक का यही मानना है कि आज देश को ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो अपनी प्रशंसा के लिए नहीं , अपितु कर्तव्य के लिए कर्म करे | वास्तव में लेखक ने नींव की ईंट के माध्यम से नवयुवकों को नि : स्वार्थ न्याय और बलिदान देने की प्रेरणा दी है | देश की नीव की ईट बनने के लिए प्रत्येक नौजवान को अग्रसर होना चाहिए |

 

3.

 

():  इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यही बताना चाहता है कि सुंदर समाज का तभी निर्माण संभव हो सकता है जब कुछ उत्साही युवक आगे बढ़कर देश की प्रगति के लिए नींव की ईंट बने | वस्तुत : कुछ  व्यक्ति अपना अस्तित्व मिटा कर ही सुंदर समाज अथवा देश का निर्माण कर सकते हैं | बलिदान ईट का हो या व्यक्ति का | सुंदर इमारत बने इसलिए कुछ  पक्की लाल ईटो  को  चुपचाप नीव में जाना ही होता है | इसलिए सुंदर समाज बने कुछ तपे - तपाए अर्थात साहसी लोगों को मौन - मूक अर्थात बिना अपनी प्रशंसा के लालच के शहादत देनी चाहिए अर्थात अपने आपको देश के लिए बलिदान देने के लिए तत्पर रहना चाहिए |

 

 

():  'नीव की ईट' नामक पाठ के आधार पर यदि हम इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें तब तो यही कहा जा सकता है कि किसी वस्तु का आवरण या ऊपरी ढांचा सत्य नहीं होता, परंतु नीचे  जो ठोस है नींव की ईंट है ,वही सत्य है |  नीव की ईट दिखाई नहीं देती  परंतु सत्य  वही होती है | ऊपरी रूप से दिखाई देने वाला सत्य सत्य नहीं होता, वह तो मूर्खों द्वारा प्रचारित एक सत्य होता है | सत्य की खोज करनी पड़ती है , तभी हम सत्य के सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं | इसलिए लेखक कहता है कि मनुष्य का यही धर्म होना चाहिए कि वह किसी भी बात की  सच्चाई तक पहुंचे ताकि वह किसी भवन की नींव की ईंट  की सच्चाई  को जान सके |   नीव की ईटे ही सत्य है |

 

():  नीव की ईट नामक  पाठ में लेखक द्वारा  कहीं गई यह अंतिम पंक्तियां है | लेखक यही मानता है कि देश को आज उन उत्साही और त्यागी नवयुवकों की आवश्यकता है, जो अपनी प्रशंसा की नहीं , अपितु अपना मुख्य कर्तव्य तथा पहला धर्म मान कर देश की उन्नति के बारे में चिंतन करें | उन्हें देश की उन्नति के लिए नीव की ईट बनने के लिए तत्पर होना चाहिए | इस प्रकार लेखक 'नीव की ईट' के माध्यम से ऐसे नौजवानों का आहान करना चाहते हैं जो अपनी नि : स्वार्थ त्याग भावना से बलिदान करते हुए देश की नीव की ईट बनने के लिए आगे आएं |