Wednesday, 16 December 2020

18) शिवाजी का सच्चा स्वरूप

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18) शिवाजी का सच्चा स्वरूप













 

1) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:

 

1. शिवाजी कौन थे?

उत्तर:  शिवाजी एक प्रसिद्ध मराठा वीर थे | उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था |



 

2. मोरोपंत कौन था?

उत्तर:  मोरोपंत शिवाजी के राज्य में एक पेशवा अर्थात एक प्रमुख सरदार था |

 

3.  आवाजी सोनदेव कौन था?

उत्तर:  आवाजी सोनदेव शिवाजी का एक सेनापति था |

 

4. शिवाजी के सच्चे स्वरूप को दर्शाती इस पाठ की घटना किस समय की है?

उत्तर:  शिवाजी के सच्चे स्वरूप को दर्शाती इस पाठ की घटना उस समय हुई जब शिवाजी धर्मानंद विदेशी शासन के अमानुषिक अत्याचारों से निरंतर लोहा ले रहे थे |

 

5. मोरोपंत शिवाजी को आकर क्या शुभ समाचार देता है?

उत्तर:  मोरोपंत शिवाजी के पास आकर यही शुभ समाचार देता है कि उनके सेनापति आवाजी सोनदेव ने कल्याण प्रांत को जीत लिया है वहां का सारा खजाना लूटकर लौट आया है |

 

6.  आवाजी सोनदेव ने शिवाजी को सबसे बड़े तोहफे के बारे में क्या बताया?

उत्तर: आवाजी सोनदेव बंद पालकी में बैठी कल्याण के सूबेदार अहमद की सुंदर पुत्रवधू को शिवाजी की सेवा के लिए ही विजय का सबसे बड़ा तोहफा बनाकर लेकर आया है |

 

7. शिवाजी की प्रसन्नता एकाएक लुप्त क्यों हो गई थी?

उत्तर:  आवाजी सोनदेव सूबेदार अहमद के सुंदर पुत्र वधू को उनको भेट करने के लिए लाया है, यह सुनकर शिवाजी की सारी प्रसंता एकाएक लुप्त हो जाती है और उनकी   भक्ति अर्थात भोहे चड़ गई |

 

8. शिवाजी ने सूबेदार की पुत्रवधू की सुरक्षा करते हुए उसे क्या आश्वासन दिया?

उत्तर:  शिवाजी ने सूबेदार की पुत्रवधू को सुरक्षा प्रदान करते हुए यह आश्वासन भी दिया कि उसको इज्जत, हिफाजत, और खबरदारी के साथ उसके शौहर के पास पहुंचा दिया जाएगा |

 

9.  शिवाजी पर स्त्री को किसके समान मानते थे?

उत्तर:  शिवाजी पर - स्त्री को मां के रूप में मानते थे |

 

10. शिवाजी ने अंत में क्या घोषणा की?

उत्तर:  शिवाजी ने अंत में घोषणा की कि भविष्य में अगर कोई ऐसा कार्य करेगा तो उसका सिर उसी समय धड़ से अलग कर दिया जाएगा |

 

2) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए:

 

1. शिवाजी ने अपने सेनापति की गलती पर सूबेदार की पुत्रवधू से किस प्रकार मुआफी मांगी?

उत्तर:  अहमद की पुत्रवधू से मां, का संबोधन करते हुए शिवाजी ने अपने सेनापति के अनुचित तथा मूर्खतापूर्ण व्यवहार पर माफी मांगते हुए उसकी अजीबोगरीब खूबसूरती की प्रशंसा की और कामना की, कि काश उसकी मां भी उसकी तरह खूबसूरत होती | उन्होंने कहा मैं, आपकी खूबसूरती की मैं केवल हिंदू विधि से पूजन ही कर सकता हूं | आप जरा भी परेशान ना हो | आपको पूरी इज्जत और हिफाजत के साथ आपके शौहर के पास पहुंचा दिया जाएगा |

2. शिवाजी ने अपने सेनापति को किस प्रकार डांट फटकार लगाई?

उत्तर:  शिवाजी ने अपने सेनापति को डांट फटकार करते हुए कहा कि आवाजी, तुमने ऐसा काम किया है जो कदाचित क्षमा नहीं किया जा सकता | शिवा को जानते हुए ,निकट  से जानते हुए भी तुम्हारा साहस ऐसा घृणित कार्य करने के लिए कैसे हुआ ? शिवाजी ने तो सदा मस्जिद और कुरान को भी पूजा माना है | वह हिंदू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं समझता | आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तूने यह कार्य नहीं किया? शिवा में, उसके सेनापतियो तथा सरदारों में शील नहीं तो फिर हमने और लोलुप लुटेरों तथा डाकूओ में कोई अंतर ही नहीं रह जाता | इस पाप का ना जाने मुझे कैसा - कैसा   प्रेषित करना पड़ेगा?

 

3. शिवाजी किस तरह के सच्चे साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे?

उत्तर:  हिंदू होते हुए भी शिवाजी को इस्लाम धर्म पूज्य था | इस्लाम के पवित्र स्थान, उसके पवित्र ग्रंथ उनके लिए सम्मान की वस्तुएं थी | उसकी सेवा में मुस्लिम सैनिक तक थे | अत:  वे देश में हिंदू राज्य नहीं, सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे और आततायियों से सत्ता का अपहरण कर उदार चेताओ के हाथों में अधिकार देना चाहते थे |

 

4. शिवाजी शील अर्थात सचित्र को जीवन का आवश्यक अंग क्यों मानते थे?

उत्तर:  शिवाजी शील और सचरित्र की एक जीती जागती तस्वीर है | वे तो अपनीे शत्रु की खूबसूरत मुस्लिम सत्री को भी मां कहकर संबोधित करते हैं | उनका यह मानना है कि पर - सत्री तो हरेक के लिए माता के समान होती है |अत : जो अधिकार प्राप्त जन है , जो सरदार है या राजा ही क्यों ना हो , उन्हें तो अपने  सचरित्र का पालन करते हुए सबसे अधिक विवेक रखना आवश्यक होता है |

 

 3.) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 6- 7 पंक्तियों में दीजिए:

 

 

1.

 

उत्तर:  शिवाजी अपने विशेष सैनिकों का सम्मान करना जानते हैं ,तभी तो कल्याण प्रांत को जीतकर लौटते हुए अपने सेनापति आवाजी  सोनदेव से पैदल तथा घुड़स्वरों के अधिपतिओं का कुशल-क्षेम पूछते हैं | वह ग्रंथि कार्य करने वाले व्यक्ति को दंड देने की भी क्षमता रखते हैं | शिवाजी हिंदू और मुसलमान प्रजा में कोई भेदभाव नहीं करते हैं | शिवाजी इस्लाम के पवित्र संस्थानों तथा पवित्र ग्रंथों का सम्मान करना भी जानते हैं | वह अपने देश में तभी तो हिंदू- राज्य नहीं , सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना  चाहते हैं | पर - सत्री  को तो वे माता के समान मानते हैं | शिवाजी शील स्वभाव में विश्वास करने वाले शासक है | तभी तो  वे इंद्रिय -  लोलुप लुटेरों में तथा अपने अधीनस्थ  घृणित कार्य करने वाले व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं मानते | वह किसी भी पाप का प्रायश्चित करने से नहीं हिचकिचाते | इस प्रकार शिवाजी एक सचित्र व्यक्ति का बेजोड़ उदाहरण है |

 

2. इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:  सेठ गोविंद दास रचित एकांकी 'शिवाजी का सच्चा स्वरूप' पाठ से यही शिक्षा मिलती है कि सच्चे स्वराज्य से ही प्रजा का कल्याण हो सकता है | किसी भी व्यक्ति को भले ही वह बड़े से बड़े पद का अधिकारी हो उसे कोई भी नीच या घृणित कार्य नहीं करना चाहिए | पर सत्री को माता के समान मानकर उसका आदर- सम्मान करना चाहिए | किसी भी व्यक्ति को  कोई भी  घ्रणित कार्य नहीं करने दिया  जाना चाहिए  अन्यथा वह दंड का अधिकारी हो सकता है | मनुष्य को सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए | किसी के भी धार्मिक संस्थान अथवा धार्मिक पुस्तकों को किसी प्रकार की भी क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए | मनुष्य को अपने अधिकार क्षेत्र की कभी भी  उल्लंघना नहीं करनी चाहिए |

 

3. 'शिवाजी का सच्चा स्वरूप' एकांकी के नाम की सार्थकता अपने शब्दों में लिखिए|

उत्तर:  सेठ गोविंद दास द्वारा विरचित 'शिवाजी का सच्चा स्वरूप' नामक एकांकी का नाम  समरथा सार्थक ही प्रतीत होता है, क्योंकि इसमें लेखक ने आरंभ से लेकर अंत तक शिवाजी के सचित्र और उनके सच्चे स्वरूप को ही प्रदर्शित करने की चेष्टा की है | लेखक ने इस एकांकी में शिवाजी को हमारे राष्ट्रीय गौरव के महान ध्वज के रूप में चित्र करने में सव्रथा सफलता पाई है | शिवाजी की अपराजेय शक्ति , शौर्य तथा पराक्रम के सशक्त्त स्वरूप की अभिव्यक्ति करने वाले इस एकांकी का नाम समरथा सार्थक है | देश की शक्तियों को संगठित कर 'हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का  संपन्न दिखाना भी इस एकांकी के नाम की सार्थकता  ही सिद्ध करता है |

 

4. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए:

 

. आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तुमने यह कार्य नहीं किया?

():  यह पंक्तियां शिवाजी ने अपने सेनापति आवाजी सोनदेव को उस समय कही थी जब वह कल्याण के सूबेदार अहमद की सौंदर्य की प्रतिमूर्ति पुत्रवधू को एक बंद पालकी में लाकर उसे शिवाजी को भेंट करना चाहता है | शिवाजी उसकी इस हरकत से दुखी होकर  चिंता से भरे स्वर में उसे धिकारते हैं कि उसने यह कैसा अनर्थ कर डाला है | शिवाजी उसे कहते हैं उसने ऐसा काम किया है जो कदाचित क्षमा नहीं किया जा सकता | वह तो उनके सदचरित्र को भली प्रकार जानता है और निकट से जानता है | उनके सानिध्य में रहते हुए भी उसने क्या यह धृष्टता उनके चरित्र की परीक्षा लेने के लिए तो नहीं की ? संभवत : उसने यही सोचकर ऐसा किया होगा | उन्हें उसके इस कृत्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा कि उसने किस अभिप्राय से यह सब किया है |

. पेशवा, यह.....  यह मेरे.....मेरे एक सेनापति ने ....मेरे एक सेनापति ने क्या.... क्या कर डाला|  लज्जा से मेरा सिर आज पृथ्वी में नहीं ,पताल में घुसा जाता है | इस  पाप का ना जाने मुझे कैसा ....कैसा  प्रायश्चित करना पड़ेगा?

():  यह पंक्तियां अपने मोरोपंत नामक पेशवा से शिवाजी दुखी और खिन्न मन से उस समय कहते हैं जब उनका सेनापति आवाजजी सोनदेव कल्याण विजय के उपरांत वहां के सूबेदार अहमद की अन्य ग्रह सुंदर पुत्रवधू को शिवाजी को पेंट करने अपने साथ ले आता है | शिवाजी को उसके इस घृणित कार्य के फल स्वरुप अपने  क्षोभा को अभिव्यक्त करने में भी बड़ी दुशवारी होती है | इन्हें इस बात पर विश्वास ही नहीं हो पाता कि ऐसा कुकृत्य उनके सेनापति ने किया है | उसके इस जघनय  कार्य से शिवाजी को इतनी शर्मिंदगी तथा लज्जा आती है कि उनका सिर समरथा झुक जाता है | वह करें भी तो क्या करें | उन्हें प्रेषित करने के बारे में भी कुछ नहीं सूझता | वस्तु : शिवाजी के विचार में यह एक ऐसा पाप हो गया था जिसका कोई प्रतिकार हो ही नहीं सकता |